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पहली बार पटना में सनातन महा‑कुंभ: आस्था और राजनीति का संगम

पटना, 6 जुलाई 2025 — विरासत और आस्था के रंग में रंगा गांधी मैदान, जहाँ इतिहास के पहले सनातन महा‑कुंभ का
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पटना, 6 जुलाई 2025 — विरासत और आस्था के रंग में रंगा गांधी मैदान, जहाँ इतिहास के पहले सनातन महा‑कुंभ का आयोजन धूम‑धड़ाका के साथ संपन्न हुआ।

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    उद्घाटन उद्घाटन समारोह का शुभारंभ बिहार के राज्यपाल अरिफ मोहम्मद खान ने किया। उपस्थितियों में डिप्टी सीएम विजय सिन्हा और पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार चौबे प्रमुख रहे हैं ।

    धर्मगुरु व प्रवक्ता बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री (“बाबा बागेश्वर”) ने महागुण्ड में दो घंटे का प्रवचन दिया, जबकि उनका पारंपरिक ‘दरबार’ इस कार्यक्रम में नहीं लगा ।

    सांकेतिक संदेश बाबा ने स्पष्ट कहा– “राजनीति नहीं, राम‑नीति के उद्देश्य से पटना आए हैं” । साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि “अगर भारत हिंदू राष्ट्र हुआ तो पहला बिहार बनेगा” ।

    भागीदारी करीब 500 से अधिक साधु‑संत और मठाधीश शामिल हुए। देश भर से हजारों श्रद्धालु तथा तीन राज्यों (बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान) के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री की उपस्थिति की संभावना जताई गई ।

    सुरक्षा व व्यवस्था 2,500+ सुरक्षा कर्मी (RAF, STF, जिला पुलिस), CCTV और ड्रोन निगरानी, एंटी-टेरर और बम स्क्वाड, VIP ज़ोन, मेडिकल कैंप, भंडारा क्षेत्र—संपूर्ण प्रबंध ।

    पूजा‑अनुष्ठान सुबह 7 बजे से हनुमान चालीसा और परशुराम चालीसा का सामूहिक पाठ हुआ। 108 “परशु” (शस्त्र) गांव-गांव से लाकर प्रदर्शित किए गए ।

    आयोजन उद्देश्य अश्विनी चौबे ने इसे धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि “राष्ट्र जागरण” और “सनातन चेतना” के पुनरुत्थान का माध्यम बताया ।

    यह आयोजन धार्मिक चेतना के साथ-साथ राजनीतिक संदेश के इर्द-गिर्द केंद्रित रहा—”राम नीति”, “हिंदू राष्ट्र”, “पहला बिहार” जैसे नारे दें रहे हैं संकेत ।

    साधु-संतों की उपस्थिति और बड़ी संख्या में राजनीतिक हस्तियों की संभावित भागीदारी ने इसे आस्था और शक्ति दोनों का आयोजन बना दिया।

     

    मर्यादित दरबार और प्रवचन का तरीका इसे पारंपरिक महाकुंभों से अलग—यह मौजूदा राजनीतिक माहौल से जुड़ने का संकेत भी हो सकता है।

    पटना का यह सनातन महा‑कुंभ केवल एक धार्मिक महोत्सव नहीं रहा, बल्कि यह सांस्कृतिक पुनरुत्थान और राजनीतिक संकेतों का मेला भी रहा। आगामी विधानसभा चुनावों से पहले इसका असर और गहराने की संभावना है।

    जहां आस्था और राजनीति एक साथ चलें, वहाँ असर भी गहरा होता है—पटना का यह महाकुंभ उसके पहले संकेत रहा।

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